By sanjeev Chauhan

दिल्ली को लेकर, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) का कई साल से एक ही गोल था कि साम-दाम-दंड-भेद। चाहे जैसे भी हो ‘दिल्ली’ को आम आदमी पार्टी (आप यानी अरविंद केजरीवाल-मनीष सिसौदिया एंड कंपनी) से ‘मुक्त’ कराना है।

देर तो क्या कई साल लग गए इस हसरत को सर-ए-अंजाम तक पहुंचाने में। अगर कहें कि भाजपा और संघ नेतृत्व को इस ‘उम्मीद’ को अमली जामा पहनाने में खून-पसीना बहाना पड़ गया है। तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हां, अब यह बेशकीमती हसरत बीजेपी और संघ की पूरी हो चुकी है। भाजपा में ‘आपियो’ (आप पार्टी और उसके कर्ताधर्ता) को ठिकाने लगाने की जिद पूरी हुई। तो दिल्ली की सत्ता के सिंहासन पर कब्जा भी भाजपा को मिल गया।

अब सिंहासन पर बैठते ही भाजपा सरकार के सामने दिल्ली में यूं तो चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौतियां होंगीं कि, कैसे केजरीवाल एंड कंपनी यानी ‘आप’ के ‘पाप’ जल्दी से जल्दी सरकारी फाइलों में से ‘खोदकर’ बाहर लाए जा सकें। क्योंकि यह भाजपा के लिए आइंदा को ‘तुरुप का पत्ता’ साबित होगा।

साल 2025 दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के एजेंडे में एक यह भी अहम बिंदु था कि, अगर दिल्ली में बीजेपी की स्वतंत्र सत्ता सिंहासन संभालेगी। तो सबसे पहले भाजपा की सरकार ‘आप’ के वे ‘पाप’ ही जनता के सामने लाएगी जिनके बलबूते आम आदमी पार्टी और उसके ठेकेदार कई साल से दिल्ली की सत्ता पर सवारी गांठ रहे थे।

मतलब दिल्ली में भाजपा सरकार (रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार), दिल्ली की जनता को हर-संभव यह बताने-समझाने की कोशिश करेगी, मय सबूतों के कि कैसे केजरीवाल-मनीष सिसौदिया एंड कंपनी ने, दिल्ली वालों को ‘फ्री-फोकट’ सेवाओं के नाम पर मूर्ख बनाकर या बरगलाकर, सिर्फ और सिर्फ वोट खींचकर अपना उल्लू सीधा किया है?

बहरहाल छोड़िए यह सब। मुद्दे की बात यह है कि जिस पुश्तैनी और दबंग राजनीतिज्ञ, यानी दिल्ली के पूर्व जाट नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. साहिब सिंह वर्मा के पुत्र, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने, नई दिल्ली विधानसभा जैसी ‘हॉट-सीट’ पर। ‘आप’ के ‘मां-बाप’ और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को, साल 2025 के विधानसभा इलेक्शन में चारों खाने चित करके हराने के बाद।

दिल्ली और देश में पूरी आम आदमी पार्टी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा।अरविंद केजरीवाल की तो बात ही छोड़ दीजिए। उनकी यह दुर्गति देखने के बाद। आखिर ऐसे दबंग प्रवेश साहिब सिंह वर्मा कहां कैसे और क्यों चूक गए, दिल्ली के सिंहासन की सीढ़ी तक पहुंचने में? और कैसे रेखा गुप्ता बन गईं दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री? दरअसल इसके पीछे कई गंभीर कारण नजर आते हैं।

एक प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री न बनाकर और, रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने कई, सवाल-जवाब सामने खड़े कर दिए हैं। जिन पर विचार हमें और आपको करना है।

पहला, अरविंद केजरीवाल खुद को ‘बनिया-वैश्य’ वर्ग का दिल्ली में ‘भगवान’ जताने-बताने समझने लगे थे। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने रेखा गुप्ता यानी वैश्य पुत्री-बहू को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर। अरविंद केजरीवाल को दो टूक सब कुछ बता समझा दिया है।

दूसरा, अरविंद केजरीवाल ने अपनी कुर्सी जाने पर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर, जमाने और पार्टी के सामने ‘महिला-कार्ड’ खेला था। बेजेपी और संघ ने रेखा गुप्ता के सहारे केजरीवाल एंड कंपनी का यह दांव भी ‘ध्वस्त’ कर दिया।

तीसरा, भाजपा समर्थित छात्र संगठन यानी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (जिसकी रेखा गुप्ता लंबे समय तक युवावस्था में पदाधिकारी रहीं) के मेहनती युवा अगर ईमानदारी मेहनत और सब्र से भाजपा संगठन में काम लेंगे। तो देर से ही सही उन्हें उसका इनाम-इकराम जरूर दिया जाएगा। मतलब, वो मुख्यमंत्री या उससे भी किसी ऊंची पदवी से सजाया-संवारा जा सकता है।

चौथा, भाजपा-संघ संगठन में जिसने भी मेहनत-ईमानदारी सब्र के साथ, काम किया है, उसका सकारात्मक प्रतिफल पार्टी और संघ उसे जरूर देगा. जैसे कि रेखा गुप्ता का उदाहरण सर्वोत्तम है। यानी रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर, भाजपा और संघ नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि, संगठन-पार्टी में जिसने दरियां उठाई होंगीं। और कहीं किसी से यह बात गई-बजाई भी न हो। उसे भी दरियां उठाने-बिछाने के बदले कभी भी ‘दरबार’ में राजा बनने का मौका मुहैया कराया जा सकता है।

मतलब, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस जैसे धुरंधर संगठन ने, एक रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर, एक ही तीर से कई निशाने साध लिए हैं। बिना किसी और की चिल्लपों की चिंता किए हुए। इसमें अब तो कोई दो-राय या शक-ओ-शुबहा बाकी नहीं बची है। यहां जिक्र करना जरूरी है कि रेखा गुप्ता (दिल्ली की नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री), भारतीय जनता पार्टी के अभी मौजूदा वक्त में 11 मुख्यमंत्री विद्यार्थी परिषद की ही पृष्ठभूमि से हैं।

ध्यान रखने की बात यह भी है कि आम आदमी पार्टी को साफ करके और, दिल्ली से अरविंद केजरीवाल को निपटाने के बाद। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में दो और भी प्रमुख स्तंभ स्थापित कर दिए हैं एक अकेली रेखा गुप्ता के सहारे। पहला, अरविंद केजरीवाल हरियाणा से हैं। तो रेखा गुप्ता की जन्मस्थली हरियाणा के जींद जिले का नंदगढ़ है। दूसरा, अरविंद केजरीवाल की कर्मस्थली अगर दिल्ली रही। तो रेखा गुप्ता का पालन-पोषण पढ़ाई-लिखाई, राजनीतिक पृष्ठभूमि की जमीन भी दिल्ली पर ही तैयार हुई।
फोटो-अमर उजाला

One thought on “आखिर रेखा गुप्ता ही क्यों और कैसे छू सकीं दिल्ली की बादशाहत का ‘ताज?”

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